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शायरी
बात दिल की दिल मे रह गयी
मंज़िल मेरी नज़रो मे ही रह गयी
जब वक़्त आया 'मुंतज़िर' ज़िंदगी से रुखसत होने का
वो अधूरी ख्वाइश , अधूरी ही रह गयी
तेरे इश्क़ की चिंगारी मे खुद को जला दिया
तेरे इंतेजर मे सब कुछ भुला दिया
यूँ तो हज़ारो हसरते थी ज़िंदगी मे
एक तुझे पाने की राह मे, मैं सबको मारता चला गया
तू नदी चंचल सी, मैं तेरा साहिल जैसे
तुम कोई चाँद पूनम का, मैं बस तुझे तकता चकोर जैसे
आ हो जाए कुछ यूँ एक-दूजे के
तू मेरी मीरा , मैं तेरा कृष्णा जैसे
वो कुछ यूँ मेरी रुखसत पर रोया होगा
सारा समंदर उसकी आँखो मे समाया होगा
सर्फ कर मेरी यादो के जखीरे को
वो खुदा से मुझे माँगने जहन्नुम भी गया होगा
वीराने को जो कर दे गुलशन, वो कली हो तुम
हर महफ़िल को कर दे जो रंगीन , वो रस हो तुम
ना उर्वशी , ना मेनका , ना चाँद है तुम सा
हर ज़रा जिसे पाना चाहे , खुदा की वो नायाब मूर्त हो तुम
इन आँखो का अधूरा सपना रही तुम
इन धड़कनो की अधूरी आरजू रही तुम
शमा -परवाना सा रिश्ता है, हमारा - तुम्हारा
ज़िंदगी जलती रही , पर मंजिल रही तुम
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