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वो पगली कुछ ऐसे भी मुझे पाक कर जाती है
वो पगली कुछ ऐसे भी मुझे पाक कर जाती है
मेरी सारी वहसत को, दीवानगी कह जाती है
जख्मी दिल को हाथ में लेकर, कुछ ऐसा जादू चला जाती है
दवा एक भी देती नहीं, और दर्द सारा ख़तम कर जाती है
हिजाब में चेहरा छुपा, नजरो से कुछ ऐसा कह जाती है
गुजर जाती है कई शमे, वो बात दिल में रह जाती है
तारीको से रिश्ता तोड़ देने को कह जाती हैं
हाथ पकड़ती है वो मेरा, और अपने घर को ले जाती है
करती है वो जगड़ा...और मेरी आगोश में आ जाती है
सताती है मुझे वो बहुत, पर एक मुस्कान दे जाती है
मुन्तजिर है नाम, पर मुन्तजिर ना होने को कह जाती है
चुम कर मेरे लबों पर, वो मंज़िल की तरफ ले जाती है
Saturday, 23 May, 2020
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